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Memories
स्मृतियाँ
यादे
मैं गाँव हूँ, मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे। मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है. मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर असभ्यता और जाहिल गवाँर का भी आरोप है। हाँ मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़ कर दूर बड़े बड़े शहरों में चले गए।
समय
पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे. स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पाप बोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज नहो जायें। पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था। स्कूल में टाटपट्टी की अनुपलब्धता में घर से बोरी का टुकड़ा बगल में दबाकर ले जाना भी हमारी दिनचर्या थी।